Patanjali

Delhi High Court ने Patanjali के विवादित विज्ञापन पर लगाई रोक

Patanjali के विवादित विज्ञापन पर लगाई रोक

Delhi High Court ने FMCG सेक्टर के दो बड़े नामों – Patanjali Ayurved और Dabur India – के बीच चल रहे एक हाई-प्रोफाइल विज्ञापन विवाद में Patanjali को तगड़ा झटका दिया है। Dabur द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने Patanjali को अपने एक विवादित TV advertisement के प्रसारण पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया।

विवाद की शुरुआत 24 दिसंबर से उठी चिंगारी

यह विवाद 24 दिसंबर 2024 को सामने आया, जब Dabur ने आरोप लगाया कि Patanjali का विज्ञापन उनके लोकप्रिय उत्पाद Chyawanprash को बदनाम कर रहा है। Dabur का दावा था कि यह विज्ञापन भ्रामक, अपमानजनक और व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है।

Patanjali पर क्या हैं Dabur के आरोप?

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1. ब्रांड को “साधारण” और “गुणवत्ताहीन” बताना:

Patanjali ने अपने विज्ञापन में Dabur के उत्पाद को आम और कमजोर बताया, जबकि Dabur का कहना है कि उनके पास 61.6% से अधिक मार्केट शेयर है।

2. गलत आंकड़े और भ्रामक जानकारी:

Patanjali ने दावा किया कि उनके उत्पाद में 51 जड़ी-बूटियाँ हैं, जबकि Dabur के अनुसार इसमें केवल 47 हैं।

3. वेद और आयुर्वेद के नाम पर अनुचित दावा:

Patanjali का यह दावा कि “केवल वही असली च्यवनप्राश बना सकते हैं जिन्हें वेदों और आयुर्वेद का ज्ञान हो,” Dabur के अनुसार भ्रामक है।

4. Mercury की मौजूदगी का मुद्दा:

Dabur ने आरोप लगाया कि Patanjali के उत्पाद में mercury जैसे हानिकारक तत्व हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

Court Summons के बाद भी जारी रहा प्रसारण

Dabur ने कोर्ट को बताया कि Patanjali को समन जारी होने के बावजूद, विवादित विज्ञापन को 6,182 बार प्रसारित किया गया। इसे Dabur ने अदालत की अवमानना बताया।

कोर्ट का फैसला – तुरंत रोक का आदेश

Delhi High Court ने इसे गम्भीर मामला मानते हुए Patanjali Ayurved को तत्काल प्रभाव से विज्ञापन पर रोक लगाने का आदेश दिया। यह आदेश न केवल मौजूदा विवाद को नियंत्रित करता है बल्कि भविष्य में विज्ञापन के नाम पर ब्रांड मानहानि के मामलों में एक कानूनी मिसाल भी स्थापित कर सकता है।

निष्कर्ष

Patanjali और Dabur के बीच यह टकराव केवल मार्केटिंग की लड़ाई नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं के विश्वास और ब्रांड प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुका है। High Court का यह फैसला साफ संदेश देता है कि misleading advertising और unjust comparisons अब बर्दाश्त नहीं किए जाएंगे।

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